May 24, 2015 by bhag
हे किसान ! देष की शान
हे किसान ! देष की शान।
खेती में तुम समर्पित,
तुम्हारा सारा जीवन दान।
तुम्हारी कड़ी मेहनत का
भू कण-कण करे बखान।
तुमसे उज्जवलित हो रहा,
खेत और खलिहान।
हे किसान ! देष की शान।
तुम तो भूमि पुत्र हो,
है तुम्हारी महिमा महान्।
ताप-षीत का तुम्हें भय नहीं,
तुमसे तो प्रकृति डरती है।
अपार परिश्रम से तुम्हारे
देती अन्न धरती है।
हे किसान ! देष की शान।
परहित में तुम कर रहे
अपने तन का दान।
गूंज रही है चहुंदिषि
बस एक ही आवाज।
कृषि से ही होगी प्रगति
और खुषहाली आज।
हे किसान ! देष की शान।
खेती है तुम्हारी सहेली,
फसलों में तुम्हारी जान् ।
तुम्हारी तपस्या से होगी,
खाद्य् समस्या समाधान््।
हे जन जीवन दाता किसान।
समृद्वि रहे तुझे वरदान।