जियो और जीने दो के उद्घोष भगवान महावीर
जियो और जीने दो के उद्घोष भगवान महावीर
अहिंसा महावीर दर्शन की मूल धुरी है-जियो और जीने दो का उद्घोष महावीर स्वामी ने किया था. मन वचन और कार्य से किसी जीव को संताप न पहुंचाना की सच्ची अहिंसा है। अहिंसा का यह उत्कर्ष जैन परम्पारा का विशिष्ट देन है। अहिंसा से ही विश्व में शांति, भाई चारा कायम रह सकता है। महावीर स्वामी के विश्व बधुत्व संदेश से, उनकी तपस्या से जन-जन में आत्मीयता और दया की भावना संजीव हो गई थी। सच से बड़ा कोई धर्म नही और झुठ से बड़ा पाप नही, इसलिए मन वचन और कर्म द्वारा सत्य का पालन करना चाहिए।
स्वयं जियो औरों को भी जीने दो प्रत्येक प्राणी जीना चाहता है, मरना नही- अतः प्राणी मात्र की हिंसा मत करो हिंसा में अधर्म, आत्म पतन होता है और अहिंसा में आत्म उत्थान होता है। असत्य बोलने का त्याग करना सौ सत्य धर्म के बराबर है. सभी दुख हिंसा से उत्पन्न होते है। ब्रम्हचर्य मोक्ष का सोपान होता है। इच्छा रहित होना अपरिग्रह है. भगवान महावीर के एैसे उपदेश आत्मा को परमात्मा से जोड़ने और विश्व शांति स्थापित करने में आज अधिक प्रासंगिक है।
अहिंसा परमोधर्माः आर्थात अहिंसा ही परम धर्म है। अहिंसा को केन्द्र मानकर भगवान महावीर ने सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रम्हचर्य जैसे महाव्रतों का उपदेश दिया था। अहिंसा से सत्य जुड़ा है. अहिंसा से ही अपरिग्रह संभव है। अहिंसा से विश्व शांति जुड़ी है। मानव ही नही प्रत्येक जीव का कल्याण अहिंसा पर आधारित है।
भारत में सबसे पहले लोकतंत्र की स्थापना बिहार के वैशाली राज्य में हुई थी। इस राज्य के प्रमुख महराज चेटक थे,जिनके भनेज के रूप में महावीर का जन्म ईसा ईसा के 599 पहले कुण्डलपुर नगर के सोने के महल नद्यावर्त में हुआ था। माता त्रिशाला को यहां सोहल स्वप्न आये थे,जिनका फल माता ने महराज सिद्धार्थ से पुछा था। नालंदा जिले में स्थित इस कुण्डलपुर नगरी के कण-कण में महावीर के जन्म की पवि़त्रता आज भी विद्यमान है- इसलिए यहां के रज प्राप्ति करने के लिए देश विदेश से धर्मानुरागी कुण्डलपुर पहुंचते है।
पांच-महाव्रत
चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को बड़े धुम-धाम से महावीर जयंती मानई जाती है. महावीर स्वामी ने कहा था मनुष्य जन्म से नही कर्म से महान बनता है। उनके सिद्धांत आज अधिक प्रासंगिक है- जिनके अहिंसा सत्य, अचैर्य, अपरिग्रह और ब्रम्हचर्य पर केन्द्रित उपदेशों में अकेेले मानव ही नही अपितु प्रत्येक प्राणी का हित छुपा है। अहिंसा महावीर दर्शन की मुल धुरी है. जियो और जीने दो का उद्घोष महावीर स्वामी ने किया था। मन वचन और कार्य से किसी जीव को संताप न पहुुंचाना ही सच्ची अहिंसा है। अहिंसा का यह उत्कर्ष जैन परम्परा कि विशिष्ट देन है. अहिंसा से ही विश्व में शांति, भाईचारा कायम रह सकता है महावीर स्वामी के विश्व बधुत्व संदेश से, उनकी तपस्या से जन-जन में दया और आत्मीयता की भावना सजीव हो गई थी। सांच से बड़ा कोई धर्म नही होता है और झुठ से बड़ा पाप नही, इसलिए मन, वचन और कर्म द्वारा सत्य का पालन करना चाहिए। आज रोग द्वेष और झुठ का बोलबाला है। अचैर्य अर्थात चोरी होता है, इस दुषित प्रवृति से छुटकारा पाने के लिए महावीर स्वामी ने अनेकांतवाद का उपदेश दिया था। महावीर स्वामी ने कहा था आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह नही करना चाहिए भारत की जनसंख्या बढ़ती जा रही है, जिसें मुलभुत साधनो जैसे- आहार, वस्त्र और आवास की उपलब्धता होना जरूरी है। कोई भी व्यक्ति यदि जरूरत से अधिक इन आवश्यकताओं का संग्रह करता है तो दुसरे व्यक्ति इनसे वंचित रह जाते है-इसलिए सग्रह अनुचित है। दुसरो पर शासन मत करो, शासन करो अपने शरीर पर, अपनी वाणी पर, अपने मन पर सभी प्रकार की भावनाओं को त्यागकर संयमी जीवन व्यतीत करना चाहिए। महावीर स्वामी ने बाल्याकाल में कठिन तपस्या के लिए वन गमन किया जिन्हें आहार देने के कारण चंदना सती हुई और संसार में प्रसिद्ध हुई, जिन्होने केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष देने वाले जैन धर्म का प्रचार किया. वे कर्म को जीतने से वीर धर्म उपदेश देने से सन्मति और उपसर्गो को सहन करने से महावीर कहलायेगें।
कठोर तपस्या के बाद महावीर स्वामी को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई, उन्होने अपने इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की। उन्होने अपूर्व साहस व मनेबल का परिचय दिया था। अंत में वे पावापुरी पहुंचे, जहां मनोहर नामक वन में पहुंचकर आत्म ध्यान करने लगे। उन्होेंने 72 वर्ष की उर्म में कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को मोक्ष प्राप्त किया. महावीर स्वामी की निर्वाण भूमि पावापुरी है। जहां पद्म सरोवर के मध्य में जल मंदिर बना हुआ है. एैसा माना जाता है की यहां महावीर यहां महावीर स्वामी का अंतिम संस्कार हुआ था।
आज कि विषम परिस्थितियों में भी महावीर स्वामी के उपदेश प्रत्येक मानव को सुख-शांति प्रदान कर सकते है, उनके संदेश ह्दय को प्रभावी ढंग से स्पर्श करते ह। अखिल विश्व के स्वामी,अनंत गुणो के सागर, धर्मरूपी चक्र के धारक भगवान महावीर की स्तुती महावीर पुराण में इस प्रकार की गई है-
सागर अतुलित गुणों के,
सर्वमान्य अखिलेश।
धर्मचक्र धारी महा,
बन्दो वीर जिनेश।।
डाॅं. भागचन्द्र जैन
प्राध्यापक (कृषि अर्थशास्त्र)
प्रचार अधिकारी
कृषि महाविद्यालय, रायपुर (छ.ग.) 492012