किसान मेले में
डाॅ. भागचन्द्र जैन
प्राध्यापक (कृषि अर्थशास्त्र)
कृषि महाविद्यालय, रायपुर – 492012
राज्य के प्रत्येक जिले में किसान मेले आयोजित किये जाने चाहिये। कृषि विकास में किसान मेलों की महत्वपूर्ण भूमिका से कृषि एवं संबंधित विभाग प्रभावित हुए हैं। वास्तव में किसान मेला कृषि तकनीकी का सामयिक आयोजन होता है, जिसमें किसान भाग लेकर प्रत्यक्ष लहलहाती फसलों को देखते हैं तथा उन्नत बीज, कृषि यंत्र, पौध संरक्षण सामग्री को देखकर उन्हें अपनाते हैं। किसान मेले में कृषि से संबंधित सभी गतिविधियों को शामिल करने का प्रयास किया जाता है। इस अवसर पर लगायी गई प्रदशनी में चित्र, चार्ट, पोस्टर आदि का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे किसानों को नई कृषि तकनीक की जानकारी मिलती है।
किसान मेले का
सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है- किसान गोष्ठी, जिसमें किसान सीधे कृषि वैज्ञानिकों से अपने प्रश्न पूछकर अपनी समस्याओं का समाधान करते हैं अर्थात किसान गोष्ठी में कृषि वैज्ञानिकों और किसानों का सीधा संवाद होता है किसान मेला, कृषक दिवस, दलहन दिवस तिलहन दिवस, सोयाबीन दिवस, आलू दिवस, समय-समय पर आयोजित किये जाते हैं, जिनके आयोजन का सिलसिला वर्ष भर चलता रहता है। किसान मेले कृषकों के कितने हित में होते हैं, किसान इनका लाभ कैसे उठायें, यह जानकारी प्रस्तुत लेख मंे दी जा रही हैं।
अंग्रजी की एक कहावत है – ‘र्सीइंग इज ब्लिविंग’ (Seeing is Bleving) अर्थात देखकर जल्दी विश्वास होता है। किसान मेले में प्रक्षेत्र भ्रमण के साथ-साथ प्रयोगशाला की तकनीकी प्रदर्शित की जाती है, जिसमें किसान नवीनतम तकनीक जैसे ऊतक संवर्धन, सत्य बीज से आलू उत्पादन आदि को प्रत्यक्ष देखकर काफी प्रभावित होते हैं तथा समुदाय में नई तकनीक अपनाने का विचार बनाते हैं।
किसान मेले में दूर-दूर से आकर किसान भाई, एक-दूसरे से मिलते हैं तथा आपस में विचार-विमर्श कर अपने अनुभव बांटते हैं। किसान मेला के अवसर पर लगायी गई प्रदर्शनी में शासकीय, सहकारी तथा निजी संस्थाये अपनी-अपनी प्रदर्शनी या स्टाल लगाती हैं, जिनमें तरह-तरह के आदान उपलब्ध होते हैं, यदि किसान चाहें तो इन कृषि आदानों को वे खेरीद सकते हैं।
कृषि विकास कार्यक्रमों को कृषि जलवायु के आधार पर क्रियान्वित किया जा रहा है तथा विभिन्नताओं को देखते हुये ‘कृषि जलवायु क्षेत्रीय परियोजना’ के क्षेत्र बनाये गये हैं, छत्तीसगढ़ में उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र, छत्तीसगढ़ का मैदान तथा बस्त्र का पठार नामक तीन जलवायु क्षेत्र बनाये गये हैं। इन जलवायु क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले 27 जिलों में कृषि विकास दु्रत गति से होगा। कृषि प्रसार की दृष्टि से क्षेत्र की विभिन्नता का पता लगाया जाता है तथा सामूहिक विकास हेतु व्यवहारिकता के अनुसार योजना बनायी जाती है, फिर लक्ष्य निर्धारित कर योजनाकी विषय वस्तु निश्चित की जाती है। किसान मेले में कृषि प्रसार की पांच अवस्थाएं एक साथ परिलक्षित होती हे, जहां किसान अपनी स्थिति, उपयुक्तता, व्यवहारिकता, लक्ष्य और अपनाने के बारे में निर्णय ले सकते हैं।
किसान मेले में सामयिक तकनीक का सजीव चित्रण किया जाता है, जिसमें बहुत कम समय में बड़ी संख्या में किसान भाग लेते हैं, खरीफ और रबी में किसान मेले आयोजित किये जाते हैं, किसान मेले का उद्देश्य सूचना के प्रसार तक सीमित नहीं होता है, बल्कि कृषि तकनीक के संदेश को ग्रहण करने पर आधारित होता है। मेले में प्रत्यक्ष देखने से विश्वास गहरा होता है। किसान मेले की सफलता का आंकलन हमें उपस्थित कृषकों की भीड़ से नहीं लगाना चाहिये, अपितु नई तकनीक को अपनाने से लगाना चाहिये।
किसान मेेले में उत्कृष्ट सब्जी तथा फलों के नमूनों को प्रदर्शित किया जाता है, मेले में एक और जहां हरित क्रांति, श्वेत क्रांति और नीली क्रांति प्रदर्शित की जाती है, वहीं कृषि के साथ-साथ सहयोगी व्यवसाय अपनाने के लिये प्रेरित किया जाता है। किसान मेले का आयोजन जिला, आंचलिक, प्रांतीय, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किया जाता है, जिसमें सैकड़ों-हजारों की संख्या में दूर-दूर से आकर किसान भाग लेते हैं तथा उन्नत कृषि तकनीक से प्रभावित होकर उसे अंगीकार करते हैं।