रसोई में प्रतिदिन तरह तरह की सब्जियां बनायीं जाती हैं, किन्तु यह सच है कि प्याज के बिना रसोई अधूरी है क्योंकि प्याज से सब्जियों के स्वाद में चार चांद लग जाते हैं। प्याज से सब्जी स्वादिष्ट हो जाती है प्याज का सूप भूख बढ़ाता है और शरीर के अनेक विकारों का नाष करता हैं। ताजा प्याज खाने से शरीर की सुस्ती दूर हो जाती है।
भारत में प्याज का उत्पादन लगभग 170 लाख टन होता है, जिसमें 150 लाख टन (84 प्रतिषत) की घरेलू खपत होती है, 6 प्रतिषत वफर स्टाक के रूप में रखी जाती है तथ षेष प्याज में से केवल 7 प्रतिषत प्याज का निर्यात किया जात हैं। मुम्बई, चेन्नई, काण्डला और कोलकाता बंदरगाह से दुबई, कुवेत, सउदी अरब, मलेषिया, सिंगापुर, बांगला देष आदि देषों के लिए प्याज का निर्यात किया जाता है । निर्यात करने पर लगभग 700 डालर प्रति टन भाव मिलता है। एक अनुमान के अनुसार सब्जियों के निर्यात से होने वाली आमदनी में लगभग 70 प्रतिषत विदेषी मुद्रा प्याज से मिलती है।
प्याज की खेती वर्ष भर की जाती है अर्थात् खरीफ रबी और जायद में प्याज का उत्पादन होता है। खरीफ में 10 से 15 प्रतिषत, ,खरीफ में देरी से की जाने वाली खेती में 30 से 40 प्रतिषत और रबी, जायद में 50 से 60 प्रतिषत प्याज का उत्पादन होता है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के अनुसार सबसे ज्यादा प्याज महाराष्ट्र में होती है।
प्रमुख प्याज उत्पादक प्रदेष (2011-12)
क््रं प्रदेष उत्पादन (प्रतिषत में )
1. महाराष्ट्र 32.20
2. कर्नाटक 14.00
3. मध्यप्रदेष 11.18
4. गुजरात 8.92
5 बिहार 7.06
6 आंध्रप्रदेष 4.71
7 राजस्थान 3.79
8 हरियाणा 3.37
9. तमिलनाडू 3.18
10 उड़ीसा 2.39
11. अन्य 9.20
कल और आज – प्याज ! प्याज !! इसका उत्पादन अधिक होने से कभी-कभी वह नासिक और अन्य स्थानों पर सड़कों पर फिकती है, किन्तु कभी-कभी इसका उत्पादन कम होने से भाव आसमान छू जाते हैं।
कहा जाता है कि प्याज रूलाती रहती है। प्याज काटने पर आसू आ जाते हैं। कम उत्पादन होने पर प्याज महंगी होने से आंसू आ जाते हैं तथा अधिक उत्पादन होने पर प्याज सस्ती बिकती है- इसलिए आंसू आ जाते हैं।
खरीफ में प्राप्त प्याज का उत्पादन भण्डारण के लिए उपयुक्त नहीं होता है। भण्डारण के लिए केवल रबी और जायद में लिया गया प्याज का उत्पादन भण्डारण के लिए उपयुक्त होता है, जिसे 5 से 6 माह तक भंडारित किया जाता है। भंडारित प्याज को प्रायः जून से अक्टूबर तक बेंचा जाता है। इसके भण्डारण हेतु राष्ट्रीय प्याज- लहसुन अनुसंधान केन्द्र, राजगुरू नगर द्वारा ‘कण्डा चाव‘ विधि विकसित की गई हैैै, जिसे अपनाने पर भण्डारण में क्षति कम होती है तथा उसकी गुणवत्ता बनी रहती है।
प्याज की मुख्य फसल अपै्रल-मई मे आती है, जबकि इसकी जरूरत साल भर रहती है, अंतः प्याज के कंदों का लम्बे समय तक भण्डारण आवष्यक है। भण्डारण में प्रायः प्याज के कंदों का सड़ने, सिकुड़ने और अंकुरित होने से नुकसान होता है। भण्डारण के परीक्षणों के आधार पर परिणाम सामने आये हैं, जिन्हें अपनाकर सुरक्षित भण्डारण किया जा सकता हैः
- भण्डारण के पहले कंदों को अच्छी तरह सुखा लें।
- केवल अच्छी तरह से पके हुए, चमकदार, ठोस और स्वस्थ कंदों का भण्डारण करें।
- भण्डारण नमी रहित, हवादार घर में करें।
- भण्डारण में प्याज की परत की गहराई 15 से.मी. से ज्यादा न हों।
- भण्डार गृह में कंदों को बांस की या अन्य प्रकार की टोकनी में भरकर टोकनी की तह लगा देनी चाहिए।
- जहां टोकनी उपलब्ध न हों, वहां प्याज की परतों के बीच सूखी घास की परत लगानी चाहिए।
- समय-समय पर प्याज के सड़े-गले कंद भंडार गृह से निकालते रहें।
- जहां तक संभव हो, प्याज का शीत गृह में भण्डारण करना अच्छा होता है।
- प्याज को इधर-उधर ले जाने में सावधानी बरतनी चाहिए।
- आलू या अन्यय उत्पाद के साथ में प्याज का भण्डारण नहीं करना चाहिए।
- प्लास्टिक के बोरे में प्याज को भंडारित नहीं करना चाहिए।
- षीतगृह में कंटेनर में कटी हुई प्याज रख सकते हैं।
प्याज के लिए भण्डारण संरचना बनाने में लगभग 6000 रूप्ये प्रति टन लागत आती है, जिसमें शासन द्वारा 25 प्रतिषत अनुदान दिया जाता है। इसमें अनुदान की पात्रता भण्डारण 5,10,15,20,25,50 टन की क्षमता में होने पर मिलती है।
राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान व विकास प्रतिष्ठान (छंजपवदंस भ्वतजपबनसजनतम त्मेमंतबी ंदक क्मअमसवचउमदज थ्वनदकंजपवद) द्वारा प्याज की किस्म एन.एच.आर.डी.एफ. रेड-4 से अन्य भण्डारण वाली किस्मों से अधिक उपज मिलती है। इस किस्म की यह विषेषता है कि इसमें ऊपरी छिलके अधिक होते हैं तथा इसका खेतों से भण्डार गृहों और मण्डी तक ले जाने में नुकसान कम होता है।
प्याज की कंदीय फसल लेने में लगभग 60 हजार रूप्ए प्रति हेक्टर लागत आती है, जबकि इसकी 250 से 300 क्ंिवटल तक प्रति हेक्टेयर उपज होती है। इसे 1200 रूप्ये प्रति क्विंटल की दर से बेंचने पर लगभग तीन लाख रूप्ये से अधिक कुल आमदनी होती है।
इसका उत्पादन सिंचाई या अच्छी वर्षा पर निर्भर होता है, इसलिए प्याज की खेती में विषेष रूप् स ेजल प्रबंधन या सिंचाई पर ध्यान देना चाहिए। प्याज की उपलब्धता निरंतर बनाये रखने के लिए इसके भण्डारण और विपणन की प्रभावी व्यवस्था होनी चाहिए। प्याज उत्पादकों को संगठित होकर भण्डारण और विपणन की व्यवस्था जुटाना जरूरी है।
- डाॅ. भागचन्द्र जैन
प्राध्यापक - कु. प्रियंका जैन
एम.एस.-सी. (कृषि)
कृषि महाविद्यालय, रायपुर 492012